Written by my dear friend Abhishek Jain, the following poem conveys our collective feeling.

भर-भर के पन्ने तोड़ दी कलमें ,
इतना मगा कि पड़ गए सदमें।
किया यूज़ नीला कभी काला पैन ,
सजाया कॉपी को किया अंडरलैन।
सूरज उठा तब गए सोने को ,
मिला नहीं एक पल खोने को।
किया नहीं कभी नैन-मटक्का ,
फोकस रखा करते थे पक्का।
निकल गयी तोंद गिर गए बाल ,
घिस-घिस के हो गए बुरे हाल।
हर महीने की पढ़ी योजना ,
खुद की बनी पंचवर्षीय योजना।
कर-कर के मर गए अथक प्रयास ,
मंज़िल मिली न एक्को बार।
फिर भी मन न मचलता है ,
जानता है, प्रयास ही सफलता है।
by –
Abhishek Jain